बहुत दिनों के बाद आज वार्ष्णेय के कलम ने कुछ लिखा। मुझे लगा था की अब वार्ष्णेय का कलम कुछ नहीं लिखेगा, लेकिन प्रियतमा से जुदाई के गम ने उनको कलम उठाने पर मजबूर कर दिया। पेश है शायरी की चंद पंक्तियाँ वार्ष्णेय की कलम से
दे दिया उसने सारा वक्त जमाने को,
मेरे हिस्से में आए तो सिर्फ बहाने उसके।
एक ख्वाहिश थी मेरी की जिंदगी रंगीन हो,
हुआ कुछ यूं की जो मिला वो गिरगिट निकला।
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